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कुछ लेखकों की प्रेम कहानी का अंत नायिका की म्रत्यु के साथ होता है|
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प्यार एक विश्वास,सम्मान और जिम्मेदारी का सयोंजन है|
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जैसे आप खुद से प्यार करते हैं, वैसे ही जीवन में आगे बढने के लिए खुद को प्रेरित भी कर सकते हैं|
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अगर संगीत प्रेम का आहार है तो उसे जरुर ग्रहण करना चाहिए |
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दिल को तर्क से नही जीता जा सकता।
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किसी से कितना भी प्यार हो जाए,लेकिन हमें अपनी मंजिल को नहीं भूलना चहिए।
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प्रेम में समय के साथ सब कुछ बदल जाता है,और हम हमेशा अकेले रह जाते हैं।
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तुम्हारी एक मुस्कुराहट मेरा सब कुछ बदल सकती थी लेकिन तुम दुनियाँ को बदलने में व्यस्त थे|
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हमें प्यार करना चाहिए, प्यार में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि जो कुछ भी गिरता है वह टूट जाता है।
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बिछड़ने पर ही प्यार की गहराई का एहसास होता है |
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किसी से आशा की उम्मीद रखना अपेक्षा करने जैसा है।
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जब आपको कोई सच्चा प्यार करने वाला मिल जाता है,तो किसी अन्य की जरूरत नहीं होती।
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मैं तुमसे प्यार करता हूँ और कोई तुम्हे मुझसे जुदा नहीं कर सकता |
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कभी कभी प्यार जिंदगी का सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है|
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प्यार करना आसान है लेकिन रिश्ते में रहना मुश्किल है|
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किसी व्यक्ति के लिए अपने प्रेमी की बाहों में मरना स्वर्ग जैसा है।
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भाग्यशाली व्यक्ति ही अपना प्यार दूसरों के साथ बांट पाता है।
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जब कोई पुरुष आपके साथ गलत व्यवहार करता है,तो उसको जवाब देने की जगह आपका वहाँ से चले जाना बेहतर है|
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सच्चा प्रेम वहाँ होता है जहाँ दो व्यक्ति एक दुसरे को समझते हों|
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मैं तुम्हे दुनियाँ के किसी भी कोने से ढूंढ लाऊंगा |
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प्रेम एक ऐसा दर्पण है जो एक कुरूप को भी सुन्दर बना देता है |
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या तो मैं उसके साथ जियूँगा या उसके बिना मर जाऊंगा |
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प्रेम का स्वीकार किया जाना ही एक उपहार की तरह होता है |
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प्रेम हर बाधा का हल है |
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हम सभी के दिल में कुछ ऐसे राज़ होते हैं जिन्हें हम सबके साथ साझा नहीं कर सकते|
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दिल के आगे दिम्माग की कहाँ चलती है|
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प्यार फीका पड़ जाता है
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मेरे पिता का मुझ पर विश्वास ही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार था|
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हमे किसी को बुरा कहने की जगह उसकी बुराइयों को ख़तम करने का प्रयास करना चाहिए|
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कभी कभी कुछ याद आने पर हमें बहुत तकलीफ होती है|
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मैंने तुम्हे अपना दिल दे दिया क्या इतना काफी नहीं था|
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किसी को बिना जाने ही उसे पसंद कर लेना ,बिना पंख वाले पंछी के उड़ने की कल्पना करने जैसा है|
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बिना त्याग किये प्रेम नहीं किया जा सकता|
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उसके सामने आते ही मुझे प्यार का एहसास हो जाता था |
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जहाँ भरोसा नहीं है,वहाँ कभी प्रेम नहीं हो सकता |
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मैं तुम्हारे साथ जिंदगी के आखिरी पल तक जीना चाहता हूं।
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किसी से प्रेम करने के लिए किसी वजह की जरूरत नहीं होती।
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मेरे लिए अतीत का कोई महत्व नहीं है
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किसी को स्वीकार हो या नहीं,परंतु मेरा ह्रदय सिर्फ उसके लिए ही धड़कता है।
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प्रेम करना एक जोखिम भरे कार्य को करने जैसा ही है
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जब आप प्यार बाटोंगे तो बदले में आपको प्यार ही मिलेग|
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मैं अपनी खुशी बस उसी के साथ बांटना चाहता हूं,जिसे मैं प्रेम करता हूं।
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मेरे लिए तुम्हारा साथ स्वर्ग से भी बड़ कर है, और तुम्हारी आंखे मेरे रहने का स्थान।
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तुम्हारे अस्तित्व को जानने के बाद मेरा दुनियां को देखने का नजरिया ही बदल गया।
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जो आपसे वास्तव में प्रेम करता है,वह आपको छोड़ कर कही नही जायेगा।
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कभी कभी प्रेम ही आपको सिखाता है की क्या सही और क्या गलत है।
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ये जानते हो की मै तुम्हे खोना नही चाहता,तुम फिर भी मुझे खुद से दूर कर रहे हो।
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जब प्रेम की बात आती है तो सब कुछ संभव हो जाता है,क्यों की प्रेम ही है जो किसी को दोबारा जीने की प्रेरणा देता है।
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आप किसी को प्रेम तो कर सकते जा हैं,परंतु बिना त्याग किए प्रेम पा नही सकते।
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किसी को भी हमसफर कहना बहुत आसान है, लेकिन हर सफर में साथ देने वाला व्यक्ति पाना बहुत मुश्किल।
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किसी इंसान से झूठा वादा करके उसे गुमराह नही करना चाहिए।
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जो मैंने तुम्हें दिया है,मै नही जानती तुम्हारे लिए उसका क्या महत्व है।
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भाग्यशाली लोगों के नसीब में ही सच्चा प्रेम होता है।
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प्रेम का अनुकरण करके उसका निर्माण करना असंभव है।
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यदि आप किसी चीज से प्यार करते है तो उसे आजाद छोड़ दे,वो वापस आजायेगी अगर आपकी होगी तो।
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दुःख में भी मुस्कुराना चाहिए,हो सकता है किसी को आपकी मुस्कुराहट से प्यार हो जाये।
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जीवन में खुशी केवल प्रेम करने से ही मिलती है।
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किसी व्यक्ति को समझना इतना मुश्किल कार्य नहीं है,जितना मुश्किल बिना पक्षपात किए निर्णय लेना है।
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मैं आपकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनना चाहता हूं।
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दिल की धड़कन के अनुसार समय व्यतीत होता है।
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तुम मेरे बिना क्या करोगे,मै इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता।
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यह स्वीकार करना कठिन है कि वह अपने जीवन में पहले ही आगे बढ़ चुका है
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प्रेम खुशी के साथ साथ दुख भी लाता है।
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प्रेम में बिताया हुआ समय अनमोल होता है।
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मैं तुमसे नफरत कर सकता हूं, परंतु प्यार कम नहीं कर सकता।
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प्यार में पड़ना दुनिया का सबसे आसान काम होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।
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एक साथ एक दिल में दो लोग नही रह सकते।
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उसका प्यार मेरे लिए हमेशा रहेगा।
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मेरा खुद को असुरक्षित महसूस करना इस बात का संकेत है,की अब तुम मुझ से प्रेम नही करते।
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वह मुझे बर्बाद करने के सारे तरीके जानती है।
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जिनसे हम प्यार करते हैं,उनके साथ यात्रा करना अच्छा लगता है।
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प्रेम ही है जो हमे ईश्वर प्रदान करता है।
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उसका होना मेरे लिए मायने रखता है,इस बात को नकारना असंभव हो गया है।
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किताबी ज्ञान होना ही पर्याप्त ज्ञान नहीं है।
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प्यार में व्यक्ति गलतियों को माफ करना सीख ही जाता है।
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प्रेम एक ऐसा फल है जिसको पाने के लिए तपस्या करनी पड़ती ।
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तुम्हारा प्यार मेरे लिए एक शस्त्र की तरह है।
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शक्तहीन व्यक्ति द्वारा किया गया प्यार,आपको कभी मजबूत नही बना पाता।
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ये सोच कर आश्चर्य होता है,की व्यक्ति पैसे के लिए क्या कुछ नहीं कर सकता।
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लंबे समय से किया गया त्याग ह्रदय को पत्थर बना देता है।
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प्रेम में समर्पण के बाद भी,बदले में प्रयाप्त प्यार ना पाना भी ह्रदय को दुख से भर देने जैसा है।
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वो व्यक्ति धन्य है जो प्यार के बदले प्यार देता है।
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तुम्हारे पाने के बाद मुझे कुछ और पाने की चाहत नही रही।
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दोनो तरफ से प्यार होना सूरज की गर्मी को महसूस करने जैसा है
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एक बार किसी से दिल लगा जाने के बाद,किसी और से दिल लगाना मुश्किल होता है।
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जरूरी नहीं हर उपहार आपको आपकी अपेक्षा के अनुसार मिले
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आपसे प्यार करने वाले व्यक्तियों को दूर करना,अपने जीवन का अंत करने जैसा है।
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प्रेम मनुष्य को कोमल बना सकता है,परंतु अहंकारी नही।
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पहली नजर के प्यार को समझना आसान होता है।
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प्रेम में समय का कोई महत्व नहीं रहता।
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निराशा व्यक्त करना उतना ही आसान है, जितना प्रेम व्यक्त करना कठिन।
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प्रेम और संगीत के बीच बहुत गहरी दोस्ती होती है।
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समर्पण की भावना से किया गया प्रेम ही वास्तविक प्रेम है।
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आपकी बोली ही किसी के दिल तक पहुंचने का तरीका है
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प्रेम के बदले प्रेम पाने की उम्मीद ही सबसे ज्यादा आहत करती है।
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मैं तुम्हारी जिंदगी की हर परेशानी को दूर करने की कोशिश करूंगा।
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मै उन पुरुषों में से हूं जिसे समझने के लिए अनंत प्रेम की आवयश्कता है।
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प्रेम का विपरीत अर्थ घृणा करना नही बल्कि उपेक्षा करना है।
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मेरा विचार है की प्रेम अमर है और जीवन जीने के लिए प्रेम का होना जरूरी है।
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तूफान आने से पहले भी शांति हो जाती है।
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आपकी आंतरिक शक्ति ही,आपके बाहरी जीवन का आधार है।
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लोगों से प्रेम करने की तुलना से अधिक कलात्मक कुछ नहीं है |
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जीवन ठहराव और गति के बीच का संतुलन है।
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एक दिन ऐसा होएगा, सब सूँ पड़े बिछोइ | राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ ||
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अतीत पे धयान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो।
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संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।
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शांति के लिए कोई विशेष रास्ता नहीं है, शांति अपने आप में ही एक रास्ता है।
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हमारे जीवन के गहनतम अंधकार के वक़्त हमें अपना ध्यान रोशनी देखने पर केंद्रित करना चाहिए।
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आत्मबल, सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य, विद्या प्रदान करती है। विद्या, स्थिरता प्रदान करती है, और स्थिरता, विजय की तरफ ले जाती है।
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जो तर्क को अनसुना कर देते हैं, वह कट्टर हैं | जो तर्क ही नहीं कर सकते, वह मुर्ख हैं और जो तर्क करने का साहस ही नहीं दिखा सकते, वह गुलाम हैं।
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समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करना होगा क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते हैं।
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शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान है।
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मैं अपनी ज़िन्दगी जितना संभव हो उतने स्वाभाविक और सामान्य तरीके से व्यतीत कर सकता हूँ। लेकिन अगर दिन रात विवाद मेरे पीछे पड़े रहें तो मैं इसका कुछ नहीं कर सकता। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि वे किस तरह ये सब करते हैं। मैं दाढ़ी बढ़ता हूँ और वह टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सम्पादकीय में आ जाता है।
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किसी ने हजरत अली रज़ी से पूछा के जिनकी माँ नही होती उनके बच्चों को दुआ कौन देता है? आप ने फरमाया के कोई झील अगर सुख भी जाए तो मिट्टी से नमी नही जाती इसी तरह माँ के इन्तेकाल के बाद भी अपनी औलाद को दुआ देती रहती है।
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जीवन हमें जो ताश के पत्ते देता हैं, उन्हे हर खिलाड़ी को स्वीकार करना पड़ता हैं, लेकिन जब पत्ते हाथ में आ जावे तो खिलाड़ी को यह तय करना होता हैं कि वह उन पत्तों को किस तरह खेलें, ताकि वह बाजी जीत सके।
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ज्ञान हर व्यक्ति के जीवन का आधार है।
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समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं।
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मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति की डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।
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एक इतिहासकार सटीक, ईमानदार और निष्पक्ष होना चाहिए।
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समाज में अनपढ़ लोग हैं ये हमारे समाज की समस्या नही है। लेकिन जब समाज के पढ़े लिखे लोग भी गलत बातों का समर्थन करने लगते हैं और गलत को सही दिखाने के लिए अपने बुद्धि का उपयोग करते हैं, यही हमारे समाज की समस्या है।
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हमें जो स्वतंत्रता मिली है उसके लिए हम क्या कर रहे हैं? यह स्वतंत्रता हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिली है। जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी हुई है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करती है।
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यदि पाकिस्तान का हमारे देश के किसी भी हिस्से को हड़पने का इरादा है, तो उसे नए सिरे से सोचना चाहिए। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि बल का बल से सामना होगा और हमारे खिलाफ़ आक्रामकता कभी भी सफ़ल नहीं होने दी जायेगी।
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विज्ञान और वैज्ञानिक कार्यों में सफलता असीमित या बड़े संसाधनों का प्रावधान करने से नहीं मिलती बल्कि यह समस्याओं और उद्दश्यों को बुद्धिमानी और सतर्कता से चुनने से मिलती है और सबसे बढ़कर जो चीज चाहिए वो है निरंतर कठोर परिश्रम।
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अगर तुम समय की रेत पर अपने पैरों के निशान छोड़ना चाहते हो तो अपने पैर घिसट कर मत चलो।
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यदि हर इंसान द्वारा शिक्षा के वास्तविक अर्थ को समझ लिया जाता और उस शिक्षा को मानव गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ाया जाता तो यह दुनिया रहने लिए कहीं ज्यादा अच्छी जगह होती।
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सबसे उत्तम कार्य क्या होता है? – किसी इंसान के दिल को खुश करना, किसी भूखे को खाना खिलाना, जरूरतमंदों की मदद करना, किसी दुखियारे का दुख दूर करना, किसी घायल की सेवा करना आदि।
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यदि किसी देश को भ्रस्टाचार-मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगो का देश बनाना है तो मेरा द्रढ़ता पूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य यह कर सकते हैं – माता, पिता और गुरु।
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सत्य के मार्ग पर चलने हेतु बुरे का त्याग अवश्यक है, चरित्र का सुधार आवश्यक है।
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हमने यह महसूस किया है कि यदि हमने विभाजन स्वीकार नहीं किया तो भारत छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित होकर विनष्ट हो जाएगा। कार्यालय में मेरे एक वर्ष के अनुभव से मुझे ज्ञात हुआ कि हम जिस रास्ते पर चल रहे थे वह हमें विनाश की ओर ले जा रहा था। ऐसा करने पर हमारे पास एक नहीं कई पाकिस्तान होते। हमारे प्रत्येक कार्यालय में एक पाकिस्तानी शाखा होती।
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प्यार सब्र रखता है और कृपा करता है। प्यार जलन नहीं रखता, डींगें नहीं मारता, घमंड से नहीं फूलता, गलत व्यवहार नहीं करता, सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता, भड़क नहीं उठता। यह चोट का हिसाब नहीं रखता। यह बुराई से खुश नहीं होता, बल्कि सच्चाई से खुशी पाता है। यह सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों पर यकीन करता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज से सह लेता है। प्यार कभी नहीं मिटता।
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अगर मैं पहले से कोई अंतिम लक्ष्य बना के चलता तो क्या आपको नहीं लगता है कि मैं उसे सालों पहले पूरा कर चुका होता।
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अंहकार, दरअसल वास्तविकता में आप नहीं है। अंहकार की आपकी अपनी छवि है। ये आपका सामाजिक मुखौटा है। ये वो पात्र है जो आप खेल रहे हैं। आपका सामाजिक मुखौटा प्रसंशा पर जीता है। वो नियंत्रण चाहता है, सत्ता के दम पर पनपता है क्योंकि वो भय में जीता है।
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अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं. मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे।
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मेरी माँ सबसे खूबसूरत औरत थीं जिसे मैंने कभी देखा। मैं जो भी हूँ अपनी माँ की वजह से हूँ। मैं अपने जीवन में मिली सभी सफलता का श्रेय उनसे मिली नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक शिक्षा को देता हूँ।
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जीतने की संकल्प शक्ति, सफल होने की इच्छा और अपने अंदर मौजूद क्षमताओं के उच्चतम् स्तर तक पहुंचने की तीव्र अभिलाषा, ये ऐसी चाबियां हैं जो व्यक्तिगत उत्कृष्टता के बंद दरवाजे खोल देती है।
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एक हिंसक क्रांति हमेशा किसी न किसी तरह की तानाशाही लेकर आई है… क्रांति के बाद, धीरे-धीरे एक नया विशेषाधिकार प्राप्त शासकों एवं शोषकों का वर्ग खड़ा हो जाता है, लोग एक बार फिर जिसके अधीन हो जाते हैं।
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जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करने आती है, कठिनाइयों को यह जान लेने दो की आप उससे भी ज्यादा कठिन हो।
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बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की खोज करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही अवॉयड कर देते है। समस्याएँ कॉमन है, लेकिन आपका एटीट्यूड इनमे डिफरेंस पैदा करता है।
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उतावले उत्साह से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिये।
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पहले पाच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करिए। आपके वयस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
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पेड़ों को देखो, पक्षियों को देखो, बादलों में देखो, सितारों को देखो और अगर आपके पास आँखें है तो आप यह देखने में सक्षम होगे की पूरा अस्तित्व खुश है सब कुछ बस खुश है पेड़ बिना किसी कारण के खुश हैं; वे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने नहीं जा रहे हैं और वे अमीर बनने भी जा रहे हैं और ना ही कभी उनके पास बैंक बैलेंस होगा .. फूलों को देखिये,- बिना किसी कारण के कितने खुश और अविश्वसनीय है।
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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
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क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।
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आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है।
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ध्यान दीजिये कि सबसे कठोर पेड़ सबसे आसानी से टूट जाते हैं, जबकि, बांस या विलो हवा के साथ मुड़कर बच जाते है।
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हमें अपनी मूल आदिवासी संस्कृति नहीं भूलनी चाहिए।
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ओ! गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों, तुम्हारा हमारे देश में क्या काम? छोटा नागपुर सदियों से हमारा है और तुम इसे हमसे छीन नहीं सकते इसलिए बेहतर है कि वापस अपने देश लौट जाओ वरना लाशों का ढेर लग जाएगा।
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यह धरती हमारी है, हम इसके रक्षक हैं।
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हर अन्याय के खिलाफ उलगुलान, यही पुरखों का रास्ता है।
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अप्राकृतिक ताकतों के खिलाफ एकजुट हो जाओ।
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उठो प्रकृति ने तुम्हे जीने के लिए सभी हथियार दिये हैं।
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मैं सभी दिशाओ से पुकार रहा हूँ।
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स्वतंत्र भारत में कोई भी भूख से नहीं मरेगा। अनाज निर्यात नहीं किया जायेगा। कपड़ों का आयात नहीं किया जाएगा। इसके नेता ना विदेशी भाषा का प्रयोग करेंगे ना किसी दूरस्थ स्थान, समुद्र स्तर से 7000 फुट ऊपर से शासन करेंगे। इसके सैन्य खर्च भारी नहीं होंगे, इसकी सेना अपने ही लोगों या किसी और की भूमि को अधीन नहीं करेगी। इसके सबसे अच्छे वेतन पाने वाले अधिकारी इसके सबसे कम वेतन पाने वाले सेवकों से बहुत ज्यादा नहीं कमाएंगे और यहाँ न्याय पाना ना खर्चीला होगा, ना कठिन होगा।
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आपको ये नहीं मानना चाहिये कि आप जो श्रम करेंगे उससे उत्पन्न फसल को आप ही काटेंगे। सदेव ऐसा नहीं होता। हमे अपनी पूर्ण शक्ति से श्रम करना चाहिये और उसका परिणाम आने वाली पीढ़ी के भोगने के लिए छोड़ देना चाहिये। याद रखिये ,आप जो आम आज खा रहे हैं उनके पेड़ आपने नहीं लगाये थे।
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दूसरे के मुह से पानी नहीं पिया जा सकता ,हमे पानी स्वयं पीना होगा। वर्तमान व्यवस्था (अंग्रेजी हुकूमत ) हमे दुसरे के मुह से पानी पीने के लिए मजबूर करती है। हमे अपने कुवें से अपना पानी खीचना और पानी पीना चाहिये।
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प्रातः काल मे उदित होने के लिए ही सूर्य संध्या काल मे अन्धकार के गर्त मे चला जाता है। अन्धकार मे जाए बिना प्रकाश प्राप्त नहीं हो सकता। गर्म हवा के झोंकों मे जाए बिना, कष्ट उठाये बिना, पैरों मे छाले पड़े बिना, स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती।
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एक बहुत प्राचीन सिद्धांत है की ईश्वर उनकी ही सहायता करता है ,जो अपनी सहायता आप करते हैं। आलसी व्यक्तियों के लिए ईश्वर अवतार नहीं लेता। वह उद्योगशील व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होता है। इसलिए कार्य करना शुरु कीजिये।
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धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है।
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ऐसे लोग हैं जिन्हें पूँजीवाद पसंद नहीं है, और ऐसे लोग भी हैं जिन्हें पर्सनल कम्प्यूटर्स पसंद नहीं है। पर ऐसा कोई भी नहीं है जिसे पी सी पसंद हो और वो माइक्रोसोफ्ट को पसंद ना करता हो।
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आपका दोष क्षमता की कमी या साधनों की कमी की दृष्टि से नहीं है, वरन दोष इस बात मे है कि आप में संकल्प का अभाव है। आपने उस संकल्प को अपने मे उत्पन्न नहीं किया है जो आपको पहले ही उत्पन्न कर लेना था। संकल्प ही सब कुछ है। आपको संकल्प शक्ति इतना साहस दे सकती है कि आपको लक्ष्य पाने से कोई नहीं रोक सकता।
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किसी को “क्रांति ” शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते है।
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अगर आप हर चीज में अपने लिए एक सीमा निर्धारित कर देंगे, शारीरिक या कुछ और; वो आपके काम, आपके जीवन मे फ़ैल जायेगा। कोई सीमाएं नहीं हैं। सिर्फ पठार हैं, और आपको वहाँ रुकना नहीं है, आपको उनसे आगे जाना है।
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शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
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यदि बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिए।
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कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता; जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है। वही संत है।
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एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है। वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है। लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हस्र होने वाला है। वह आदमी मूर्ख है।
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यह ज़रूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और ह्रदय जितना संभव हो अच्छा करें. इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आयेंगी।
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लोग और उनके धर्म; सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए. अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
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नफरत करना आसान है, प्रेम करना मुश्किल। विश्व की सारी वस्तुएं ऐसे ही काम करती है। सारी अच्छी चीजों को पाना मुश्किल होता हैं, और बुरी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं।
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इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है . निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।
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अस्पृश्यता वह विष है, जो धीरे-धीरे हिंदू धर्म के प्राण ले रहा है|इस बुराई को जितनी जल्दी निर्मल कर दिया जाए,उतना ही समाज मानव जाति के लिए कल्याणकारी होगा|
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मैं ट्रैनिंग के हर एक मिनट से नफरत करता था, लेकिन मैंने कहा , हार मत मानो। अभी सह लो और अपनी बाकी की ज़िन्दगी एक चैंपियन की तरह जियो।
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मेरे पिता को प्रकृति के प्रति एक बड़ा जुनून था। वास्तव में, मैंने उन्हीं से प्रकृति से प्यार करना सीखा. उन्होंने हमेशा प्रकृति संरक्षण की कारण वकालत की। मेरे पिता ने मुझमें भी यह चीज डाली।
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आज मैं एक अरब लोगों में एक अरब संभावित उपभोक्ताओं को देखता हूँ, उनके लिए मूल्य उत्पन्न करने का एक अवसर और अपनी वापसी के लिए एक अवसर के रूप में देखता हूँ।
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लोहे को कोई नुकसान नहीं पहूंचा सकता लेकिन यह कार्य उसका अपना ही जंग कर सकता है। वैसे ही किसी व्यक्ति को कोई नष्ट नहीं कर सकता सिवाय उसकी अपनी मानसिकता के।
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विश्व के करोड़ों लोग मेहनत करते है लेकिन सबको इसका फल अलग-अलग प्राप्त होता हैं। इन सब के लिए मेहनत जिम्मेदार हैं। इसलिए मेहनत से मत भागिये, मेहनत करने के तरीको में सुधार लाइए।
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जिन जीवन मूल्यों और नीतियों को मैं जीवन में जीता रहा, इसके सिवा मैं जो संपंदा अपने पीछे छोड़ना चाहता हूं वह यह है कि आप हमेशा जिस चीज को सही माने उसके साथ डट कर खड़े रहे और जहां तक संभव हो निष्पक्ष बने रहे।
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हम अपने देश के लिए आज़ादी चाहते हैं, पर दूसरों का शोषण कर के नहीं, ना ही दूसरे देशों को नीचा दिखाके, मैं अपने देश की आजादी ऐसे चाहता हूँ कि अन्य देश मेरे आजाद देश से कुछ सीख सकें, और मेरे देश के संसाधन मानवता के लाभ के लिए प्रयोग हो सकें.
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आप रातोरात अपनी पत्नी को नहीं बदल सकते, अपने बच्चों को नहीं बदल सकते, अपने सहयोगियों/सहकर्मियों अथवा मित्रों को नहीं बदल सकते मगर स्वयं को बदल सकते हैं …कोशिश करके देखिये आप बदलेंगे तो अपने आप यह समूह भी बदल जाएगा।
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यदि मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते. मैं धर्म के लिए जान तक दे दूंगा. लेकिन यह मेरा निजी मामला है। राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है। राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधो, मुद्रा इत्यादि का ध्यान रखेगा, लेकिन मेरे या आपके धर्म का नहीं. वो सबका निजी मामला है।
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यदि कोई दुखी है, पीड़ित है और उसके कंधे पर हाथ रख दिया जाये, तो निश्चित रूप से उसकी पीड़ा कम हो जाएगी। रोते हुये बच्चे को माँ या फिर किसी सगे के द्वारा गोद में उठा लेना और संस्पर्श पाकर बच्चे का चुप हो जाना यह दर्शाता है कि स्पर्श हमारा भावनात्मक बल है।
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“जब आप अपना दुःख बांटते हैं , वो कम नहीं होता. जब आप अपनी ख़ुशी बांटने से रह जाते हैं, वो कम हो जाती है.अपनी समस्याओं को सिर्फ ईश्वर से सांझा करें , और किसी से नहीं, क्योंकि ऐसा करना सिर्फ आपकी समस्या को बढ़ाएगा.अपनी ख़ुशी सबके साथ बांटें|
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“मैं आपको बताता हूँ, आपके भीतर एक परमानंद का फव्वारा है, प्रसन्नता का झरना है. आपके मूल के भीतर सत्य,प्रकाश, प्रेम है, वहां कोई अपराध बोध नहीं है, वहां कोई डर नहीं है. मनोवैज्ञानिकों ने कभी इतनी गहराई में नहीं देखा|”
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एक प्रेम-युक्त ह्रदय सभी ज्ञान का प्रारंभ है।
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भ्रष्टाचार को पकड़ना बहुत कठिन काम है, लेकिन मैं पूरे जोर के साथ कहता हूँ कि यदि हम इस समस्या से गंभीरता और दृढ संकल्प के साथ नहीं निपटते तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में असफल होंगे.
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विज्ञान हमें ज्ञानवान बनाता है, लेकिन दर्शन हमें बुद्धिमान बनाता है।
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सादगी परम जटिलता है।
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जो आप नहीं समझते, यदि उसकी प्रसंशा करते हैं तो बुरा करते हैं, लेकिन अगर निंदा करते हैं तो और भी बुरा करते हैं।
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जीवन बहुत आसान है- आप कुछ काम करते हैं। ज्यादातर में असफल हो जाते हैं और कुछ में सफल । जो काम कर जाता है उसे आप और अधिक करते हैं। अगर वो बड़ा स्तर तक जाता है तो बाकी लोग तेजी से उसे कॉपी कर लेते हैं। तब आप कुछ और करते हैं। ट्रिक- कुछ और करते रहने में है।
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हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें, तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जाएँगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं।
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कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है; क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी उसी का अनुसरण करती है।
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अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला, और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला, पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है।
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प्रतिशोध मनुष्य को जलाती रहती है, संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक उपाय होता है।
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जीवन में सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योंकि दिन और रात की तरह अच्छे दिनों को भी बदलना पड़ता है।
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जरूरी नही कि विपत्ति का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने में, वीरता हो, वीरता तो विजय में है।
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जीतने वाले लाभ देखते हैं, हारने वाले दर्द।
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स्वर्ग से कितना दूर? बस अपनी आँखें खोलो और देखो। तुम स्वर्ग में हो।
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जन्म देने वाले माता पिता से अध्यापक कहीं अधिक सम्मान के पात्र हैं, क्योंकि माता पिता तो केवल जन्म देते हैं, लेकिन अध्यापक उन्हें शिक्षित बनाते हैं, माता पिता तो केवल जीवन प्रदान करते हैं, जबकि अध्यापक उनके लिए बेहतर जीवन को सुनिश्चित करते हैं।
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जीवन मुख्य रुप से अथवा मोटे तौर पर तथ्यों और घटनाओं पर आधारित नहीं है। यह मुख्य रुप से किसी व्यक्ति के दिलो दिमाग में निरन्तर उठने वाले विचारों के तूफानों पर आधारित होती है।
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चरित्र वृक्ष के समान है तो प्रतिष्ठा, उसकी छाया है। हम अक्सर छाया के, बारे में सोचते हैं, जबकि असल, चीज तो वृक्ष ही है।
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भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है: भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शासन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है।
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सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें।
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एक शब्द और लगभग सही शब्द में ठीक उतना ही अंतर है जितना कि रोशनी और जुगनू में।
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जो पढ़ता नहीं है, वह उस व्यक्ति से कतई बेहतर नहीं है जो अनपढ़ है।
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क्रोध एक तेजाब है जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है।
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भारतभूमि मानव जाति का पालना है, मानव-भाषा की जन्मस्थली है, इतिहास की जननी है, पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है।
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देरी से प्राप्त की गई सम्पूर्णता की तुलना में निरन्तर सुधार बेहतर होता है।
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उन लोगों से दूर रहें जो आप आपकी महत्वकांक्षाओं को तुच्छ बनाने का प्रयास करते हैं। छोटे लोग हमेशा ऐसा करते हैं, लेकिन महान लोग आपको इस बात की अनुभूति करवाते हैं कि आप भी वास्तव में महान बन सकते हैं।
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मुझे अधिक संबंध इस बात से नहीं है कि आप असफ़ल हुए, बल्कि इस बात से कि आप अपनी असफलता से कितने संतुष्ट है।
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उस व्यक्ति को आलोचना करने का अधिकार है जो सहायता करने की भावना रखता है।
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जिस प्रकार मैं एक गुलाम नहीं बनना चाहता, उसी प्रकार मैं किसी गुलाम का मालिक भी नहीं बनना चाहता. यह सोच लोकतंत्र के सिद्धांत को दर्शाती है।
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जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान | मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ||
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लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट | पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ||
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साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय | मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ||
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सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद | कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ||
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कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख | माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ||
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बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार | मानुष से देवत किया करत न लागी बार ||
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गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय | बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ||
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माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर | कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ||
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तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय | कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ||
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दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ||
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माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय | एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ||
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माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर | आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ||
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शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान | तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||
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कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और | हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ||
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जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप | जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ||
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जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग | कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ||
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माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख | माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ||
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काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ||
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आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर | एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ||
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दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार | तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ||
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जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल | तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ||
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नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग | और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ||
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हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट | बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ||
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दस द्वारे का पिंजरा, तामें पंछी का कौन | रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन ||
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दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर | अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ||
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दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय | बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ||
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गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच | हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ||
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क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह | साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ||
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बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ | नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ||
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सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप | यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप ||
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मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय | मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय ||
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जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय | यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ||
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कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार | साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ||
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बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार | एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ||
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पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप | पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ||
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कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय | ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ||
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कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय | चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय ||
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वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल | बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल ||
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कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय | एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ||
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हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय | जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ||
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समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय | मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ||
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सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन | प्राण तजे बिन बिछड़े, सन्त कबीर कह दीन ||
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तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार | सत्गुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ||
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जाके जिव्या बन्धन नहीं, ह्र्दय में नहीं साँच | वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ||
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राम रहे बन भीतरे गुरु की पूजा ना आस | रहे कबीर पाखण्ड सब, झूठे सदा निराश ||
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हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध | हद बेहद दोनों तजे, ताको भता अगाध ||
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मैं अपराधी जन्म का, नख-सिख भरा विकार | तुम दाता दु:ख भंजना, मेंरी करो सम्हार ||
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अन्तर्यामी एक तुम, आत्मा के आधार | जो तुम छोड़ो हाथ तो, कौन उतारे पार ||
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भक्ति गेंद चौगान की, भावे कोई ले जाय | कह कबीर कुछ भेद नाहिं, कहां रंक कहां राय ||
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प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय | लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ||
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प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय | राजा-परजा जेहि रुचें, शीश देई ले जाय ||
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लागी लगन छूटे नाहिं, जीभ चोंच जरि जाय | मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय ||
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साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय | सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ||
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जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय | सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ||
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कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय | भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ||
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सुमिरन में मन लाइए, जैसे नाद कुरंग | कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्रान तजे तेहि संग ||
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जबही नाम हिरदे घरा, भया पाप का नाश | मानो चिंगरी आग की, परी पुरानी घास ||
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जा करण जग ढ़ूँढ़िया, सो तो घट ही मांहि | परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं ||
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ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग | तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ||
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छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार | हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार ||
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सुमरित सुरत जगाय कर, मुख के कछु न बोल | बाहर का पट बन्द कर, अन्दर का पट खोल ||
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नहीं शीतल है चन्द्रमा, हिंम नहीं शीतल होय | कबीरा शीतल सन्त जन, नाम सनेही सोय ||
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दाया भाव ह्र्दय नहीं, ज्ञान थके बेहद | ते नर नरक ही जायेंगे, सुनि-सुनि साखी शब्द ||
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फूटी आँख विवेक की, लखे ना सन्त असन्त | जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त ||
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जब लगि भगति सकाम है, तब लग निष्फल सेव | कह कबीर वह क्यों मिले, निष्कामी तज देव ||
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बानी से पह्चानिये, साम चोर की घात | अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह कई बात ||
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दिल का मरहम ना मिला, जो मिला सो गर्जी | कह कबीर आसमान फटा, क्योंकर सीवे दर्जी ||
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जल ज्यों प्यारा माहरी, लोभी प्यारा दाम | माता प्यारा बारका, भगति प्यारा नाम ||
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जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय | नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ||
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आहार करे मन भावता, इंदी किए स्वाद | नाक तलक पूरन भरे, तो का कहिए प्रसाद ||
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जब ही नाम ह्रदय धरयो, भयो पाप का नाश | मानो चिनगी अग्नि की, परि पुरानी घास ||
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मार्ग चलते जो गिरा, ताकों नाहि दोष | यह कबिरा बैठा रहे, तो सिर करड़े दोष ||
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संत ही में सत बांटई, रोटी में ते टूक | कहे कबीर ता दास को, कबहूँ न आवे चूक ||
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सबते लघुताई भली, लघुता ते सब होय | जौसे दूज का चन्द्रमा, शीश नवे सब कोय ||
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ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय | नीचा हो सो भरिए पिए, ऊँचा प्यासा जाय ||
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कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय | टूट एक के कारने, स्वान घरै घर जाय ||
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जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम | दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम ||
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छिन ही चढ़े छिन ही उतरे, सो तो प्रेम न होय | अघट प्रेम पिंजरे बसे, प्रेम कहावे सोय ||
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जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय | प्रेम गली अति साँकरी, ता में दो न समाय ||
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कथा-कीर्तन कुल विशे, भवसागर की नाव | कहत कबीरा या जगत में नाहि और उपाव ||
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तेरा साँई तुझमें, ज्यों पहुपन में बास | कस्तूरी का हिरन ज्यों, फिर-फिर ढ़ूँढ़त घास ||
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फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम | कहे कबीर सेवक नहीं, चहै चौगुना दाम ||
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बाहर क्या दिखलाए, अनन्तर जपिए राम | कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम ||
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सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह | शब्द बिना साधु नही, द्रव्य बिना नहीं शाह ||
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काया काठी काल घुन, जतन-जतन सो खाय | काया वैध ईश बस, मर्म न काहू पाय ||
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जहँ गाहक ता हूँ नहीं, जहाँ मैं गाहक नाँय | मूरख यह भरमत फिरे, पकड़ शब्द की छाँय ||
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तन बोहत मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय | कबहु के धर्म अगम दयी, कबहुं गगन समाय ||
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बलिहारी वा दूध की, जामे निकसे घीव | घी साखी कबीर की, चार वेद का जीव ||
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कहता तो बहुत मिला, गहता मिला न कोय | सो कहता वह जान दे, जो नहिं गहता होय ||
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सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुड़ै सौ बार | दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, ऐके धका दरार ||
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आस पराई राख्त, खाया घर का खेत | औरन को प्त बोधता, मुख में पड़ रेत ||
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यह माया है चूहड़ी, और चूहड़ा कीजो | बाप-पूत उरभाय के, संग ना काहो केहो ||
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सिंह अकेला बन रहे, पलक-पलक कर दौर | जैसा बन है आपना, तैसा बन है और ||
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जो जन भीगे रामरस, विगत कबहूँ ना रूख | अनुभव भाव न दरसते, ना दु:ख ना सुख ||
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सब आए इस एक में, डाल-पात फल-फूल | कबिरा पीछा क्या रहा, गह पकड़ी जब मूल ||
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सुमरण की सुब्यों करो ज्यों गागर पनिहार | होले-होले सुरत में, कहैं कबीर विचार ||
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ऊँचे कुल में जामिया, करनी ऊँच न होय | सौरन कलश सुरा, भरी, साधु निन्दा सोय ||
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कबिरा खालिक जागिया, और ना जागे कोय | जाके विषय विष भरा, दास बन्दगी होय ||
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घट का परदा खोलकर, सन्मुख दे दीदार | बाल सने ही सांइया, आवा अन्त का यार ||
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साधु गाँठि न बाँधई, उदर समाता लेय | आगे-पीछे हरि खड़े जब भोगे तब देय ||
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अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान | हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ||
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साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय | चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ||
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जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस | मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास ||
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लोग भरोसे कौन के, बैठे रहें उरगाय | जीय रही लूटत जम फिरे, मैँढ़ा लुटे कसाय ||
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खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह | आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह ||
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जो जाने जीव न आपना, करहीं जीव का सार | जीवा ऐसा पाहौना, मिले ना दूजी बार ||
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जहर की जर्मी में है रोपा, अभी खींचे सौ बार | कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ||
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साँई ते सब होते है, बन्दे से कुछ नाहिं | राई से पर्वत करे, पर्वत राई माहिं ||
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कांचे भाडें से रहे, ज्यों कुम्हार का देह | भीतर से रक्षा करे, बाहर चोई देह ||
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गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव | कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव ||
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साधु सती और सूरमा, इनकी बात अगाध | आशा छोड़े देह की, तन की अनथक साध ||
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एक ते अनन्त अन्त एक हो जाय | एक से परचे भया, एक मोह समाय ||
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भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग | भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ||
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सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह | लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ||
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लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत | लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत ||
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आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक | कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक ||
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आस पराई राखता, खाया घर का खेत | और्न को पथ बोधता, मुख में डारे रेत ||
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अपने-अपने साख की, सब ही लीनी भान | हरि की बात दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ||
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अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट | चुम्बक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट ||
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आग जो लगी समुद्र में, धुआँ ना प्रकट होय | सो जाने जो जरमुआ, जाकी लाई होय ||
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आशा का ईंधन करो, मनशा करो बभूत | जोगी फेरी यों फिरो, तब वन आवे सूत ||
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आहार करे मनभावता, इंद्री की स्वाद | नाक तलक पूरन भरे, तो कहिए कौन प्रसाद ||
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हरि संगत शीतल भया, मिटी मोह की ताप | निशिवासर सुख निधि, लहा अन्न प्रगटा आप ||
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उज्जवल पहरे कापड़ा, पान-सुपरी खाय | एक हरि के नाम बिन, बाँधा यमपुर जाय ||
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आया था किस काम को, तू सोया चादर तान | सूरत सँभाल ए काफिला, अपना आप पह्चान ||
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आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर | एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बाँधि जंजीर ||
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ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए | औरन को शीतल करे, आपौ शीतल होय ||
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एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार | है जैसा तैसा रहे, रहे कबीर विचार ||
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अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक होय | मानुष से पशुआ भया, दाम गाँठ से खोय ||
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उतते कोई न आवई, पासू पूछूँ धाय | इतने ही सब जात है, भार लदाय लदाय ||
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कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान | जम जब घर ले जाएँगे, पड़ा रहेगा म्यान ||
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को छूटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय | ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ||
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कबीरा संगत साधु की, निश्फल कभी न होय | होमी चंदन बसना, नीम न कही कोय ||
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कबीरा संगति साधु की, जित प्रीत कीजै जाय | दुर्गति दूर वहावति, देवी सुमति बनाय ||
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कबीरा कलह अरु कल्पना, सतसंगति से जाय | दुख बासे भागा फिरै, सुख में रहै समाय ||
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कबीरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हँसिये कोय | अजहूँ नाव समुद्र में, ना जाने का होय ||
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एक ते जान अनन्त, अन्य एक हो आय | एक से परचे भया, एक बाहे समाय ||
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कबीरा संग्ङति साधु की, जौ की भूसी खाय | खीर खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय ||
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काल करे से आज कर, सबहि सात तुव साथ | काल काल तू क्या करे काल काल के हाथ ||
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काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं | साँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ||
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कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर | ताहि का बखतर बने, ताहि की शमशेर ||
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कबीरा मन पँछी भया, भये ते बाहर जाय | जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ||
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कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय | सो कहता वह जान दे, जो नहीं गहना कोय ||
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कुटिल बचन सबसे बुरा, जासे होत न हार | साधु वचन जल रूप है, बरसे अम्रत धार ||
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कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय | इनके भये न उतके, चाले मूल गवाय ||
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काया काढ़ा काल घुन, जतन-जतन सो खाय | काया बह्रा ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ||
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कबीरा सोता क्या करे, जागो जपो मुरार | एक दिना है सोवना, लांबे पाँव पसार ||
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कस्तूरी कुन्डल बसे, म्रग ढ़ूंढ़े बन माहिं | ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ||
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करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय | बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय ||
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कहे कबीर देय तू, जब तक तेरी देह | देह खेह हो जाएगी, कौन कहेगा देह ||
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कलि खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय | चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय ||
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कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा | कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुनगा ||
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कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव | कहत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ||
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कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय | आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ||
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कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा मीठ | काल्ह जो बैठा भण्डपै, आज भसाने दीठ ||
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कबीरा मनाही गयांद है, आकांक्षा दाई राखी | विस की बेली परी रही, अमृत को फल चक्की ||
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कबिरा सोई पीर है, जो जा नैं पर पीर | जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर ||
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कागा काको घन हरे, कोयल काको देय | मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ||
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घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल | दाना तो दुश्मन भला, मूरख का क्या मेल ||
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चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार | वाके अग्ङ लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ||
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खेत न छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह | आशा जीवन मरण की, मन में राखे नाँह ||
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गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह | कह कबीर वा साधु की, हम चरनन की खेह ||
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कबीरा खालिक जागिया, और ना जागे कोय | जाके विषय विष भरा, दास बन्दगी होय ||
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कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार | वाट लगाए ना लगे फिर क्या लेत हमार ||
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केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह | अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ||
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जो तोकूं काँटा बुवै, ताहि बोय तू फूल | तोकू फूल के फूल है, बाँकू है तिरशूल ||
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जब लग भक्ति से काम है, तब लग निष्फल सेव | कह कबीर वह क्यों मिले, नि:कामा निज देव ||
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जल की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार | कबिरा खलक न तजे, जामे कौन वोचार ||
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जहाँ आप तहाँ आपदा, जहाँ संशय तहाँ रोग | कह कबीर यह क्यों मिटैं, चारों बाधक रोग ||
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जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप | पुछुप बास तें पामरा, ऐसा तत्व अनूप ||
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ज्यों नैनन में पूतली, त्यों मालिक घर माहिं | मूर्ख लोग न जानिए, बहर ढ़ूंढ़त जांहि ||
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जा घट प्रेम न संचरे, सो घट जान समान | जैसे खाल लुहार की, साँस लेतु बिन प्रान ||
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जा पल दरसन साधु का, ता पल की बलिहारी | राम नाम रसना बसे, लीजै जनम सुधारि ||
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चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय | दुइ पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय ||
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गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच | हारि चले सो साधु हैं, लागि चले तो नीच ||
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तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोई | सहज सब विधि पाए, जो मन जोगी हो ||
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तीर तुपक से जो लड़े, सो तो शूर न होय | माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय ||
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ते दिन गए अकारथी, संगत भाई न संत | प्रेम बिना पाशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||
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जो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार | जीवा ऐसा पाहौना, मिले न दीजी बार ||
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जो तु चाहे मुक्ति को, छोड़ दे सबकी आस | मुक्त ही जैसा हो रहे, सब कुछ तेरे पास ||
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झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद | जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ||
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जहाँ ग्राहक तँह मैं नहीं, जँह मैं गाहक नाय | बिको न यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छाँय ||
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पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात | देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात ||
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पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय | ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय ||
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पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय | एक पहर भी नाम बीन, मुक्ति कैसे होय ||
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न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय | मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ||
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धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय | माली सीचें सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ||
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दस द्वारे का पींजरा, तामें पंछी मौन | रहे को अचरज भयौ, गये अचम्भा कौन ||
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दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार | तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ||
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तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर | तब लग जीव जग कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर ||
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मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय | बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ||
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बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर | पँछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ||
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बानी से पहचानिए, साम चोर की घात | अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह की बात ||
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बाहर क्या दिखराइये, अन्तर जपिए राम | कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम ||
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बूँद पड़ी जो समुद्र में, ताहि जाने सब कोय | समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ||
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बन्धे को बँनधा मिले, छूटे कौन उपाय | कर संगति निरबन्ध की, पल में लेय छुड़ाय ||
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प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बजाय | चाहे घर में बास कर, चाहे बन मे जाय ||
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पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय | अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेंगे जाय ||
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पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार | याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ||
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माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश | जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश ||
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मैं रोऊँ सब जगत् को, मोको रोवे न कोय | मोको रोवे सोचना, जो शब्द बोय की होय ||
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माली आवत देख के, कलियान करी पुकार | फूल-फूल चुन लिए, काल हमारी बार ||
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मथुरा भावै द्वारिका, भावे जो जगन्नाथ | साधु संग हरि भजन बिनु, कछु न आवे हाथ ||
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माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय | भागत के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय ||
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भज दीना कहूँ और ही, तन साधुन के संग | कहैं कबीर कारी गजी, कैसे लागे रंग ||
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साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय | ज्यों मेहँदी के पात में, लाली रखी न जाय ||
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संगति सों सुख्या ऊपजे, कुसंगति सो दुख होय | कह कबीर तहँ जाइये, साधु संग जहँ होय ||
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राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय | जो सुख साधु सगं में, सो बैकुंठ न होय ||
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रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय | हीरा जन्म अनमोल था, कौंड़ी बदले जाए ||
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राम नाम चीन्हा नहीं, कीना पिंजर बास | नैन न आवे नीदरौं, अलग न आवे भास ||
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या दुनियाँ में आ कर, छाँड़ि देय तू ऐंठ | लेना हो सो लेइले, उठी जात है पैंठ ||
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ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं | सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठें घर माहिं ||
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क्षमा बड़े न को उचित है, छोटे को उत्पात | कहा विष्णु का घटि गया, जो भुगु मारीलात ||
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ॠद्धि सिद्धि माँगो नहीं, माँगो तुम पै येह | निसि दिन दरशन शाधु को, प्रभु कबीर कहुँ देह ||
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ज्ञान रतन का जतनकर माटी का संसार | आय कबीर फिर गया, फीका है संसार ||
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हरिया जाने रुखड़ा, जो पानी का गेह | सूखा काठ न जान ही, केतुउ बूड़ा मेह ||
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लकड़ी कहै लुहार की, तू मति जारे मोहिं | एक दिन ऐसा होयगा, मैं जारौंगी तोहि ||
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साईं आगे साँच है, साईं साँच सुहाय | चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट मुण्डाय ||
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संह ही मे सत बाँटे, रोटी में ते टूक | कहे कबीर ता दास को, कबहुँ न आवे चूक ||
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सांझ पाए दिन बीटबाई, चकवी दिनी रॉय | चल चकवा वा देश को, जहां बारिश नहीं हो सकती ||
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कबीरा राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ | फूटा नग ज्यूं जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ ||
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कबीरा प्रेम न चषिया, चषि न लिया साव | सूने घर का पांहुणां, ज्यूं आया त्यूं जाव ||
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राम पियारा छांड़ि करि, करै आन का जाप | बेस्या केरा पूतं ज्यूं, कहै कौन सू बाप ||
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तू तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँ | वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तू ||
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यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान | सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान ||
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कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीष | स्वाँग जती का पहरि करि, धरि-धरि माँगे भीष ||
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सतगुर हम सूं रीझि करि, एक कह्मा कर संग | बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया अब अंग ||
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न गुरु मिले न शीश भाया, लल्च खेला दाव | दुन्यु बूदे धर में, चढी पत्थर की नाव ||
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बलिहारी गुर आपणौ, घौंहाड़ी कै बार | जिनि भानिष तैं देवता, करत न लागी बार ||
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राम-नाम कै पटं तरै, देबे कौं कुछ नाहिं | क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ||
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सब रग तंत रबाब तन, बिरह बजावै नित्त | और न कोई सुणि सकै, कै साईं के चित्त ||
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अगर मैं रोता हूं तो मेरी ताकत कम हो जाती है, अगर मैं हंसता हूं तो मुझे गुस्सा आता है।
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अंशादियां झां पड़ी, पंथ निहारी-निहारी | जिभड़ियां चला पाद्य, राम पुकारी-पुकारी ||
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इस तन का दीवा करौ, बाती मेल्यूं जीवउं | लोही सींचो तेल ज्यूं, कब मुख देख पठिउं ||
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अंदेसड़ा न भाजिसी, सदैसो कहियां | के हरि आयां भाजिसी, कैहरि ही पास गयां ||
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यह तन जालों मसि करों, लिखों राम का नाउं | लेखणि करूं करंक की, लिखी-लिखी राम पठाउं ||
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बिरह-भुवगम तन बसै मंत्र न लागै कोइ | राम-बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होइ ||
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लंबा मारग, दूरिधर, विकट पंथ, बहुमार | कहौ संतो, क्यूं पाइये, दुर्लभ हरि-दीदार ||
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पहुँचेंगे तब कहैगें, उमड़ैंगे उस ठांई | आजहूं बेरा समंद मैं, बोलि बिगू पैं काई ||
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जा करनी में धोती, संमुख मिलिया आए | धन मेली पिव उजला, लगी न सकां पाई ||
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हांसी खिलालो हरि मिलाई, कौन सहाय शरण | काम क्रोध तृष्णम ताजई, तोही मिला भगवान ||
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पियारो पिता कौन, गौहानी लगाओ घई | लोभ-मिठाई हाथ दे, आप गया भूलाई ||
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परबति परबति मैं फिरया, नैन गंवाए रोइ | सो बूटी पाऊँ नहीं, जातैं जीवनि होइ ||
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सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे | दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवे ||
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कबीर हँसणाँ दूरि करि, करि रोवण सौ चित्त | बिन रोयां क्यूं पाइये, प्रेम पियारा मित्व ||
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भगति बिगाड़ी कामियां, इन्द्री केरै स्वादि | हीरा खोया हाथ थैं, जनम गँवाया बादि ||
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कामी अभी न भवई, विस ही कौन ले सोढ़ी | कुबुद्धि न जीव की, भवई सिंभा राहु प्रमोथी ||
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जब लग भगहित सकामता, सब लग निर्फल सेव | कहै कबीर वै क्यूँ मिलै निह्कामी निज देव ||
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कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुत जो भीत | जिन दिल बांध्या एक सूं, ते सुख सोवै निचींत ||
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कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउं | गले राम की जेवड़ी, जित खैंचे तित जाउं ||
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कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ | नैनूं रमैया रमि रह्मा, दूजा कहाँ समाइ ||
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कबीर एक ना जान, तो बहू जान क्या हुई | एक ताई सब गरम है, सब तैन एक ना हो ||
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भारी कहौं तो बहुडरौं, हलका कहूं तौ झूठ | मैं का जाणी राम कूं नैनूं कबहूं न दीठ ||
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दीठा है तो कस कहूं, कह्मा न को पतियाइ | हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरिष-हरिष गुण गाइ ||
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काली का स्वामी लोभिया, पितली घरी खटाई | राज-दुबारा यां फिराई, ज्ञान हरिहाई गई ||
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कामी लज्जा ना करै, न माहें अहिलाद | नींद न माँगै साँथरा, भूख न माँगे स्वाद ||
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कलि का स्वमी लोभिया, मनसा घरी बधाई | दैंहि पईसा ब्याज़ को, लेखां करता जाई ||
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कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै न कोइ | लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ ||
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ब्राह्म्ण गुरु जगत् का, साधू का गुरु नाहिं | उरझि-पुरझि करि भरि रह्मा, चारिउं बेदा मांहि ||
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इस पेट की वजह से दुनिया जाम से भरी हुई है।
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स्वामी हूवा सीतका, पैलाकार पचास | राम-नाम काठें रह्मा, करै सिषां की आंस ||
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ग्यानी मूल गँवाइया, आपण भये करना | ताथैं संसारी भला, मन मैं रहै डरना ||
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परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं | दिवस चारि सरसा रहै, अति समूला जाहिं ||
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परनारी का रचनौ, जिसी लहसन की खानी | खुनैं बसिर खैय, परगट होई दीवानी ||
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सबै रसाइण मैं क्रिया, हरि सा और न कोई | तिल इक घर मैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई ||
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कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं घ्रंम | कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत न देखै भ्रम ||
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चतुराई सूवै पढ़ी, सोइ पंजर मांहि | फिरि प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नाहिं ||
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तीरथ करि-करि जग मुवा, डूंधै पाणी न्हाइ | रामहि राम जपतंडां, काल घसीटया जाइ ||
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कबीर इस संसार कौ, समझाऊँ कै बार | पूँछ जो पकड़ै भेड़ की उतर या चाहे पार ||
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कबीर हरि-रस यां पिया, बाकी रही न थकी | पका कलास कुंभर का, बाहरी न चढाई चक्की ||
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हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ न जाइ खुमार | मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार ||
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कबीर सो घन संचिये, जो आगे कू होइ | सीस चढ़ाये गाठ की जात न देख्या कोइ ||
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त्रिक्षणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ | जवासा के रुष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ ||
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कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई | सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया न जाई ||
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पद गाएं मन हरषियां, साषी कह्मां अनंद | सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ||
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मैं जाण्यूँ पाढ़िबो भलो, पाढ़िबा थे भलो जोग | राम-नाम सूं प्रीती करि, भल भल नींयो लोग ||
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कबीर पढ़ियो दूर करी, पुस्तक दे बहाई | बावन आशिर सोढ़ी कारी, ररै मरमे चित्त लाई ||
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करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि करि तुंड | जाने-बूझै कुछ नहीं, यौं ही अंधा रुंड ||
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माया तजी तौ क्या भया, मानि तजि नही जाइ | मानि बड़े मुनियर मिले, मानि सबनि को खाइ ||
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कबीर इस संसार का, झूठा माया मोह | जिहि धारि जिता बाधावणा, तिहीं तिता अंदोह ||
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बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ़या कलंक | और पखेरू पी गये, हंस न बौवे चंच ||
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कबीर जग की जो कहै, भौ जलि बूड़ै दास | पारब्रह्म पति छांड़ि करि, करै मानि की आस ||
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कबीर माया पापरगी, फंध ले बैठी हाटि | सब जग तौ फंधै पड्या, गया कबीर काटि ||
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कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खांड़ | सतगुरु की कृपा भई, नहीं तौ करती भांड़ ||
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खूब खांड है खीचड़ी, माहि ष्डयाँ टुक कून | देख पराई चूपड़ी, जी ललचावे कौन ||
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प्रेम-प्रीति का चलना, पहाड़ी कबीरा नाचो
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काजी-मुल्ला भ्रमियां, चल्या युनीं कै साथ | दिल थे दीन बिसारियां, करद लई जब हाथ ||
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जैसी मुख तै नीकसै, तैसी चाले चाल | पार ब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल ||
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सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप | जाके हिरदै में सांच है, ताके हिरदै हरि आप ||