सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है - sirf tark karne wala dimag ek aise chaakoo ki tarah hai jisme sirf ek blade hai. iska prayog karne wale ke hatho se yah khoon nikaal deta hai. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
हर बच्चा इसी सन्देश के साथ आता है कि भगवान अभी तक मनुष्यों से हतोत्साहित नहीं हुआ है - har bachcha isi sandesh ke sath aata hai ki bhagwan abhi tak manushyo se hatotsaahit nahi hua hai. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती - mitrata ki gehraai parichay ki lambaai par nirbhar nahi karti. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
जो कुछ हमारा है वो हम तक तभी पहुचता है जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करते हैं - jo kuchh hamara hai wo hum tak atabhi aphunchta hai jab hum use grahan karne ki kshamta viksit kar lete hain. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
वे लोग जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त होते है, स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाते - ve log jo achchhai karne mein bahut jyada vyast hote hain , swayam achcha hone ke lie samay nahi nikaal paate. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते - pankhudiyaan todkar aap phool ki khubsoorti ko ikattha nahi kar sakte. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
मिटटी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आज़ादी नहीं है - mitti ke badhan se mukti ped ke liye aazadi nahi hai : रवीन्द्रनाथ टैगोर
जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं - jo kuchh hamara hai wo hum tak aata hai, yadi hum use grahan karne ki kshamta rakhte hain. : रवीन्द्रनाथ टैगोर
मंदिर की गंभीर उदासी से बाहर भागकर बच्चे धूल में बैठते हैं, भगवान् उन्हें खेलता देखते हैं और पुजारी को भूल जाते हैं - mandir ki gambhie udaasi se bahar bhagkar bachche dhool mein baithte hain , bhagwan unhe khelte dekhta hai aur pujaari ko bhool jata hai : रवीन्द्रनाथ टैगोर
मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ दीपक को बुझाना है क्योंकि सुबह हो गयी है - maut praash ko khtam karna nahi hai, ye sirf deepka ko bujhana hai kyonki subah ho gyi hai. : रवीन्द्रनाथ टैगोर