अस्पृश्यता वह विष है, जो धीरे-धीरे हिंदू धर्म के प्राण ले रहा है|इस बुराई को जितनी जल्दी निर्मल कर दिया जाए,उतना ही समाज मानव जाति के लिए कल्याणकारी होगा|
By : महात्मा गाँधी
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ashprashyata vah vish hai jo dheere dheere hindu dharm ke praan le raha hai. is buraai ko jitni jaldi hi niramal kar diya jaaye utna hi maanva jaati aur samaj ke lye kalyankaari hai | अस्पृश्यता वह विष है, जो धीरे-धीरे हिंदू धर्म के प्राण ले रहा है|इस बुराई को जितनी जल्दी निर्मल कर दिया जाए,उतना ही समाज मानव जाति के लिए कल्याणकारी होगा|
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