जिनके अंदर अय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं - jinke andar ayyashi, fijoolkharchi aur vilaasita ki kurbani dene ki himmat nahi ve adhyatm se koso door rahein : प्रज्ञा सुभाषित
चरित्रवान व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है - charitravan vyakti kisi rashtra ki vaastavik sampadaa hai. : प्रज्ञा सुभाषित
संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं - sangharsh hi jeevan hai, sangharsh se bache rah sakna ksi ke liye bhi sambhav nahi. : प्रज्ञा सुभाषित
कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता - kukarmi se badhkar koi abhaga nahi hai kyonki vipatti me uska koi saathi nahi hota. : प्रज्ञा सुभाषित
विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता - viveksheel vyakti uchit anuchit par vichar karta hau aur anuchit ko kisi bhi moolya par sweekar nahi karta : प्रज्ञा सुभाषित
मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं - manav jeevan ki safalta ka shrey jis mahanta pa nirbhar hai use ek shabd me hum dharmikta kah sakte hain : प्रज्ञा सुभाषित
सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है - safal netritva ke liye milansaari, sahanubhooti aur kritagyata jaise divya guno ki atyavashyakta hai. : प्रज्ञा सुभाषित
विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं - vipareet pratikooltaye neta ke aatm-vishwas ko chamka deti hain. : प्रज्ञा सुभाषित
नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में चलाया जा सके - netritva ka arth hai vah varchasva jiske sahare parichito aur aparichito ko ankush me rakha ja sake, anushasan me laaya ja sake. : प्रज्ञा सुभाषित
नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके - neta shikshit aur suyogya hi nahi, prakhar sankalp vala hona chahiye jo apni kathni aur karni ko ekroopta me rakhe. : प्रज्ञा सुभाषित
सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय - sadvichar tab tak madhur kalpana bhar bane rahte hain, jab tak unhe karya roop me parinit nahi kiya jata. : प्रज्ञा सुभाषित
अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है - antarang badalte hi bahirang ke ulatne me der nahi lagti : प्रज्ञा सुभाषित
जनसंख्या की अभिवृद्धि हजार समस्याओं की जन्मदात्री है - jansankhay abhivriddhi hjaar samasyao ki janm-daatri hai. : प्रज्ञा सुभाषित
प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं - prastut uljhane aur dushpravrittiyan kahin aasman se nahi tapkee. ve manushya ki apni boyi, ugaai aur badhaayi hui hain. : प्रज्ञा सुभाषित
दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है - deenta vastutah mansik heenta ka pratiphal hai : प्रज्ञा सुभाषित
व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है - vyaktitva ki apni vaani hai jo jeebh ya kalam ka istemaal kiye bina bhi logo ke antaraal ko chhooti hai : प्रज्ञा सुभाषित
डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है - darpok aur shaktiheen manushya bhagya ke peechhe chalta hai : प्रज्ञा सुभाषित
करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है - karna to badaa kaam, nahi to baithe rehna. yah duragrah moorkhtapurna hai. : प्रज्ञा सुभाषित
सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं - sabse bada deen durbal vah hai jiska apne oopar niyantran nahi : प्रज्ञा सुभाषित
एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता - ekangi athva pakshapaati mastisk kabhi bhi achcha mitra nahi rakh sakta : प्रज्ञा सुभाषित
मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है - maansahaar manavta ko tyaagkar hi kiya jaa sakta hai. : प्रज्ञा सुभाषित
जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें - jeevan ki safalta ke liye yah nitaant avashyak hai ki hum ek viveksheel aur doordarshi banein : प्रज्ञा सुभाषित
पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही कैसे जाए? - padri maulwi aur mahant bhi jab tak ek jaisi baat nahi karte to do vyaktiyo mein ek-mat ki apeksha kaise ki jaaye : प्रज्ञा सुभाषित
पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है? - pag pag par sikshak maujood hain, par aaj seekhna kaun chahta hai ? : प्रज्ञा सुभाषित
मनुष्य के भावों में प्रबल रचना शक्ति है, वे अपनी दुनिया आप बसा लेते हैं - manushya ke bhavo mein prabal rachna shkati hai, ve apni duniya aap hi basaa leta hain. : प्रज्ञा सुभाषित