ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए।
By : प्रज्ञा सुभाषित
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gyaan ke naitra humein apn durbalta se parichit karane aate hain. jab tak indriyon me sukh dikhta hai tab tak aankho par parda hua maanana chahiye | ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए।
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- अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है।
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- ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं।
- केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
- वास्तविक सौन्दर्य के आधार हैं-स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण।
- वही जीवति है, जिसका मस्तिष्क ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
- मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है।
- संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए।
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