मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है|

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मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है| : Manushya dukhi, niraas, chintit, udigna baitha rahta ho to samjhna chahiye sahi sochne ki vidhi se aparichit hone ka hi yah parinaam hai. - प्रज्ञा सुभाषित
मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है| : Manushya dukhi, niraas, chintit, udigna baitha rahta ho to samjhna chahiye sahi sochne ki vidhi se aparichit hone ka hi yah parinaam hai. - प्रज्ञा सुभाषित

manushya dukhi, niraas, chintit, udigna baitha rahta ho to samjhna chahiye sahi sochne ki vidhi se aparichit hone ka hi yah parinaam hai. | मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है|

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