क्रोध का भोजन ‘विवेक’ है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि ‘विवेक’ नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
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krodh ka bhojan vivek hai. isiliye iske bachke rahna chahiye kyonki vivek ke nashta ho jane par sab kuchh nasht ho jata hai. | क्रोध का भोजन ‘विवेक’ है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि ‘विवेक’ नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
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- मानव को अपने पल-पल को ‘आत्मचिन्तन’ मे लगाना चाहिए, क्योंकि हर क्षण हम ‘परमेश्वर’ द्वारा दिया गया ‘समय’ खो रहे है।
- संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।
- मद मनुष्य की वो स्थिति या दिशा है, जिसमे वह अपने ‘मूल कर्तव्य’ से भटक कर ‘विनाश’ की ओर चला जाता है।
- ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये ‘मनुष्य’ को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।
- मोह वह अत्यंत विस्मृत जाल है जो बाहर से अत्यंत सुन्दर और अन्दर से अत्यंत कष्टकारी है , जो इसमें फंसा वो पूरी तरह उलझ गया
- लोभ वो अवगुण है, जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।
- अहंकार एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह ‘आत्मबल’ और ‘आत्मज्ञान’ को खो देता है।
- क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बडा बना देता है।
- उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते हैं और व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता।
- कोई पछतावा नहीं। उसके लिए कोई समय नहीं है। पछतावा उबाऊ है।