संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।
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sanskar hi maanav ke acharan ki neev hota hai. sanskar jitna gahra hota hai utna hi adig manushya apne kartavya par apne dharm par satya par aur nyay par hota hai. | संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।
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- ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये ‘मनुष्य’ को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।
- मोह वह अत्यंत विस्मृत जाल है जो बाहर से अत्यंत सुन्दर और अन्दर से अत्यंत कष्टकारी है , जो इसमें फंसा वो पूरी तरह उलझ गया
- क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बडा बना देता है।
- कर्तव्यनिष्ठ पुरूष कभी निराश नहीं होता। अतः जब तक जीवित रहें और कर्तव्य करते रहें, तो इसमें पूरा आनन्द मिलेगा।
- विश्वास रखकर आलस्य छोड़ दीजिये, वहम मिटा दीजिये, डर छोड़िये, फूट का त्याग कीजिये, कायरता निकाल डालिए, हिम्मत रखिये, बहादुर बन जाइए, और आत्मविश्वास रखना सीखिए। इतना कर लेंगे तो आप जो चाहेंगे, अपने आप मिलेगा।
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- सत्य के मार्ग पर चलने हेतु बुरे का त्याग अवश्यक है, चरित्र का सुधार आवश्यक है।
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