संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।

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संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है। : Sanskar hi maanav ke acharan ki neev hota hai. sanskar jitna gahra hota hai utna hi adig manushya apne kartavya par apne dharm par satya par aur nyay par hota hai. - महर्षि दयानंद सरस्वती
संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है। : Sanskar hi maanav ke acharan ki neev hota hai. sanskar jitna gahra hota hai utna hi adig manushya apne kartavya par apne dharm par satya par aur nyay par hota hai. - महर्षि दयानंद सरस्वती

sanskar hi maanav ke acharan ki neev hota hai. sanskar jitna gahra hota hai utna hi adig manushya apne kartavya par apne dharm par satya par aur nyay par hota hai. | संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।

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