हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।
By : प्रज्ञा सुभाषित
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har vyakti jaane ya anjaane me apni paristhitiyo ka nirmaan aap karta hai | हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।
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- कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता।
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- मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं।
- प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं।
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