अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
By : प्रज्ञा सुभाषित
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andh paramparaye manushya ko aviveki banati hain | अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
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- विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता।
- सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं।
- एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
- अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
- जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।
- अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
- बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है।
- किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।
- अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
- हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है।