आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
By : प्रज्ञा सुभाषित
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aadarsho ke prati shraddha aur kartavya ke prati lagan ka jahan bhi uaday ho raha hai, samajhana chahiye ki wahan kisi devmanaav ka avirbhav hao raha hai. | आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
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- अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं।
- ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं।
- केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
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