क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बडा बना देता है।
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kshama karna sabke bas ki baat nahi kyonki yah manushya ko bahut bada bana deta hai. | क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बडा बना देता है।
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- संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं, उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।
- ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये ‘मनुष्य’ को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।
- मोह वह अत्यंत विस्मृत जाल है जो बाहर से अत्यंत सुन्दर और अन्दर से अत्यंत कष्टकारी है , जो इसमें फंसा वो पूरी तरह उलझ गया
- कर्तव्यनिष्ठ पुरूष कभी निराश नहीं होता। अतः जब तक जीवित रहें और कर्तव्य करते रहें, तो इसमें पूरा आनन्द मिलेगा।
- विश्वास रखकर आलस्य छोड़ दीजिये, वहम मिटा दीजिये, डर छोड़िये, फूट का त्याग कीजिये, कायरता निकाल डालिए, हिम्मत रखिये, बहादुर बन जाइए, और आत्मविश्वास रखना सीखिए। इतना कर लेंगे तो आप जो चाहेंगे, अपने आप मिलेगा।
- गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो।
- सत्य के मार्ग पर चलने हेतु बुरे का त्याग अवश्यक है, चरित्र का सुधार आवश्यक है।
- ध्यान दीजिये कि सबसे कठोर पेड़ सबसे आसानी से टूट जाते हैं, जबकि, बांस या विलो हवा के साथ मुड़कर बच जाते है।
- महान लोग आईडिया पर बात करते हैं, साधारण लोग रोजमर्रा घटनाक्रम की बात करते हैं, और निम्न स्तर के लोग दूसरों के बारे में बात करते हैं।
- आत्मबल के आधार पर खड़े रहने को ही स्वराज कहते हैं।