पानी की बूंद जब सागर में मिलती है तो अपनी पहचान खो देती है। इसके विपरीत व्यक्ति समाज में रहता है पर अपनी पहचान नहीं खोता। इंसान का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए पैदा नहीं हुआ बल्कि स्वयं के विकास के लिए भी पैदा हुआ है।
By : डॉ॰ बी॰ आर॰ अम्बेडकर
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paanee kee boond jab saagar mein milatee hai to aapakee pahachaan kho jaatee hai. isake vipareet vyakti samaaj mein rahata hai par apanee pahachaan nahin khoee hai. vyakti ka jeevan svatantr roop se hai. vah sirph samaaj ke vikaas ke lie paida nahin hua balki svayan ke vikaas ke lie bhee paida hua hai. | पानी की बूंद जब सागर में मिलती है तो अपनी पहचान खो देती है। इसके विपरीत व्यक्ति समाज में रहता है पर अपनी पहचान नहीं खोता। इंसान का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए पैदा नहीं हुआ बल्कि स्वयं के विकास के लिए भी पैदा हुआ है।
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