को छूटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय | ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ||

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को छूटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय | ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय || : Ko chhootau ihin jaal pari, kat phurang akulaay | jyon-jyon surajhi bhajau chahai, tyon-tyon urajhat jaay || - कबीर
को छूटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय | ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय || : Ko chhootau ihin jaal pari, kat phurang akulaay | jyon-jyon surajhi bhajau chahai, tyon-tyon urajhat jaay || - कबीर

ko chhootau ihin jaal pari, kat phurang akulaay | jyon-jyon surajhi bhajau chahai, tyon-tyon urajhat jaay || | को छूटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय | ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ||

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