अपने आनंद से पुनः जुड़ने से महत्त्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। कुछ भी इतना समृद्ध नहीं है।कुछ भी इतना वास्तविक नहीं है।
By : दीपक चोपड़ा
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apne aanand se dobara judne se mahatvapurna aur kuchh bhi nahi hai. kuchh bhi itna samriddha nahi, kuchh bhi itnqa vastvik nahi | अपने आनंद से पुनः जुड़ने से महत्त्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। कुछ भी इतना समृद्ध नहीं है।कुछ भी इतना वास्तविक नहीं है।
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- अंहकार, दरअसल वास्तविकता में आप नहीं है। अंहकार की आपकी अपनी छवि है। ये आपका सामाजिक मुखौटा है। ये वो पात्र है जो आप खेल रहे हैं। आपका सामाजिक मुखौटा प्रसंशा पर जीता है। वो नियंत्रण चाहता है, सत्ता के दम पर पनपता है क्योंकि वो भय में जीता है।
- स्वभाव रखना है तो एक छोटे से दीपक की तरह रखो यो गरीब की झोंपड़ी में भी उतनी रौशनी देता है जितनी कि एक राजा के महल में देता है।
- यदि आप और मैं इस क्षण किसी के भी विरुद्ध हिंसा या नफरत का विचार ला रहे हैं तो हम दुनिया को घायल करने में योगदान दे रेहे हैं।
- जितना कम आप अपना ह्रदय दूसरों के समक्ष खोलेंगे , उतनी अधिक आपके ह्रदय को पीड़ा होगी।
- हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमेशा किसी प्रतिक्रिया की आशा में होते हैं। इसलिए ये डर पर आधारित हैं।
- सोचना ब्रेन केमिस्ट्री का अभ्यास है।
- कोई पछतावा नहीं। उसके लिए कोई समय नहीं है। पछतावा उबाऊ है।
- अक्सर दृश्य परिवर्तन से अधिक स्वयं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
- यदि मैं आज भी उनहीं बातों पर विश्वास करता हूँ जो मैंने कल की थीं तो मैंने कुछ नहीं सीखा।
- सफल होने के लिए आपको अवश्य पढ़ना चाहिए।