धर्म मनुष्य के लिए बना है न कि मनुष्य धर्म के लिए।
By : डॉ॰ बी॰ आर॰ अम्बेडकर
इमेज का डाउनलोड लिंक नीचे दिया गया है
dharm manushy ke lie bana hai na ki manushy dharm ke lie. | धर्म मनुष्य के लिए बना है न कि मनुष्य धर्म के लिए।
Related Posts
- निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।
- आप स्वाद को बदल सकते हैं परन्तु जहर को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
- भाग्य से ज्यादा अपने आप पर विश्वास करो। भाग्य में विश्वास रखने के बजाय शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए।
- यदि आप मन से स्वतंत्र हैं तभी आप वास्तव में स्वतंत्र हैं।
- महात्मा आये और चले गये। परन्तु अछुत, अछुत ही बने हुए हैं।
- मनुष्य नश्वर हैं। ऐसे ही विचार होते हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत है जैसे एक पौधे में पानी की जरूरत होती है। अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे।
- मानवता को जीवित रखने के लिए प्रेम और दया की आवश्यकता होती है विलासिता की नहीं|
- देश के विकास के लिए नौजवानों को आगे आना चाहिये।
- कबीर धूल सकेलि के, पुड़ी जो बाँधी येह | दिवस चार का पेखना, अन्त खेह की खेह ||
- भेष देख मत भूलिये, बूझि लीजिये ज्ञान | बिना कसौटी होत नहीं, कंचन की पहिचान ||