हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ न जाइ खुमार | मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार ||

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हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ न जाइ खुमार | मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार || : Hari-ras peeya jaaniye, je kabahun na jai khumaar | maimata ghoomat rahai, naahi tan kee saar || - कबीर
हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ न जाइ खुमार | मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार || : Hari-ras peeya jaaniye, je kabahun na jai khumaar | maimata ghoomat rahai, naahi tan kee saar || - कबीर

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