धर्म भय पर विजय है; असफलता और मौत का मारक है - dharm bhay par vijay hai, asafalta aur maut ka maarak hai. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशासन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो| - humein maanavtako un naitik jadon tak wapas le jana chahiye jaha se anushasan aur swatantrata dono ka udgam ho. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
कला मानवीय आत्मा की गहरी परतों को उजागर करती है। कला तभी संभव है जब स्वर्ग धरती को छुए | - kalaa manvey aatma ki gehri paraton ko ujaagar karti hai, kalaa tabhi sambhav hai jab swarg dharti ko chhue. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
लोकतंत्र सिर्फ विशेष लोगों के नहीं बल्कि हर एक मनुष्य की आध्यात्मिक संभावनाओं में एक यकीन है - loktantra sirf vishesh logon ke nahi balki har ek manushya ki aadhyatmik sambhavnaon mein yaqeen hai. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है - keval nirmal mann wala vyakti hi eevan ke aadhyatmik arth ko samajh sakta hai . swayam ke sath imaandari aadhyatmik akhandata ki anivaryata hai. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके - shiksha ka parinaam ek muktarachnatmak vyakti hona chahiye jo aitihaasik paristhitiyon aur prakratik aapdaon se lad sake. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
एक साहित्यिक प्रतिभा – कहा जाता है कि हर एक की तरह दिखती है, लेकिन उस जैसा कोई नहीं दिखता - ek sahityik pratibha- kaha jata hai ki har ek ki tarah dikhti hai, lekin us jaisa koi nahi dikhta. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
उम्र या युवावस्था का काल-क्रम से लेना-देना नहीं है। हम उतने ही नौजवान या बूढें हैं जितना हम महसूस करते हैं। हम अपने बारे में क्या सोचते हैं यही मायने रखता है - umra ya yuvavastha ka kaal-kram se lena dena nahi hai. hum utne hi naujawan ya boodhe hain jitna hum mehsoos karte hain. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
दुनिया के सारे संगठन अप्रभावी हो जायेंगे यदि यह सत्य कि प्रेम द्वेष से शक्तिशाली होता है उन्हें प्रेरित नही करता - duniya ke saare sangthan aprabhavi ho jaayenge yadi yah satya ki prem dwesh se shaktishali hota hai unhe prerit na kare. : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन