हर इंसान के अंदर अपनी गलतियों को स्वीकारने और उन्हें सुधारने की पर्याप्त विनम्रता होती है.

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हर इंसान के अंदर अपनी गलतियों को स्वीकारने और उन्हें सुधारने की पर्याप्त विनम्रता होती है. : Har insaan ke andar apni galtiyo ko sweekarne aur unkosudharne ki paryapt vinamrata hoti hai. - महात्मा गाँधी
हर इंसान के अंदर अपनी गलतियों को स्वीकारने और उन्हें सुधारने की पर्याप्त विनम्रता होती है. : Har insaan ke andar apni galtiyo ko sweekarne aur unkosudharne ki paryapt vinamrata hoti hai. - महात्मा गाँधी

har insaan ke andar apni galtiyo ko sweekarne aur unkosudharne ki paryapt vinamrata hoti hai. | हर इंसान के अंदर अपनी गलतियों को स्वीकारने और उन्हें सुधारने की पर्याप्त विनम्रता होती है.

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