मैं अपनी ज़िन्दगी जितना संभव हो उतने स्वाभाविक और सामान्य तरीके से व्यतीत कर सकता हूँ। लेकिन अगर दिन रात विवाद मेरे पीछे पड़े रहें तो मैं इसका कुछ नहीं कर सकता। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि वे किस तरह ये सब करते हैं। मैं दाढ़ी बढ़ता हूँ और वह टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सम्पादकीय में आ जाता है।
By : अमिताभ बच्चन
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main apni zindagi jitana sambhav ho utane svabhavik aur samany tarike se vyatit kar sakta hoon. lekin agar din raat vivad mere pichhe pade rahen to main isaka kuchh nahin kar sakta. mujhe kabhi-kabhi ashchary hota hai ki ve kis tarah ye sab karte hain. main dadhi badhata hoon aur vah times of india mein aa jaata hai | मैं अपनी ज़िन्दगी जितना संभव हो उतने स्वाभाविक और सामान्य तरीके से व्यतीत कर सकता हूँ। लेकिन अगर दिन रात विवाद मेरे पीछे पड़े रहें तो मैं इसका कुछ नहीं कर सकता। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि वे किस तरह ये सब करते हैं। मैं दाढ़ी बढ़ता हूँ और वह टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सम्पादकीय में आ जाता है।
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